
हिन्दू नववर्ष क्या है प्रतिपदा? वर्तमान में यह क्यों इस हिन्दू बाहुल्य देश में अप्रचलित हो गया इसके पीछे का तर्क आज की प्राणली को समझना अतिआवस्यक हो गया है ?
हिन्दू नववर्ष क्या है प्रतिपदा?
भारतीय नववर्ष: साल या संवत्सर उसे कहते है जिसमें सभी महीने पूर्णतः निवास करते हों। प्रत्येक ऋतु के चक्र को वत्स कहते है। इसके उत्पादक पिता सूर्य है। इसी वत्स से वत्सर या संवत्सर नाम पड़ा।
शास्त्र अनुसार शिवावतारी महायोगी भगवान गुरु गोरक्षनाथ जी के शिष्य,योगी भर्तृहरि नाथ जी के भाई, उज्जैन के प्रतापी राजा विक्रमादित्य से भी संबंधित है जिन्होंने 58 ईसा पूर्व विक्रम संवत् की शुरुआत की थी
भारतीय नववर्ष को नवसंवत्सर, गुड़ीपड़वा, उगादि, चेटीचंड, विक्रमी संवत, सृष्टि संवत आदि नामों से जाना जाता है। हिन्दू पंचांग के मास चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवसंवत्सर का शुभारंभ होता है और समापन चैत्र कृष्ण अमावस्या को। चैत्र की शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष के साढ़े तीन अति शुभ मुहूर्तों में से एक माना गया है, क्यों कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन को सृष्टि की रचना के लिए चुना था। भारतीय ऋषियों-मुनियों, मनीषियों ने काल की सूक्ष्म गणना की। अंग्रेजी कैलेंडर में वर्ष ,महीना और तारीख तीन प्रमुख अंग है ,जबकि भारतीय कैलेंडर पंचांग कहलाता है। इसके पांच अंग होते है – तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण। इनकी गणना कर पूरे वर्ष का पंचांग बनाया गया है। काल की गणना सूर्य और चंद्रमा दोनों की गति के अनुसार की गई है।
यह दिवस हिन्दु समाज के लिए अत्यंत विशिष्ट है क्योंकि इस तिथि से ही नया पंचांग प्रारंभ होता है और वर्ष भर के पर्व, उत्सव एवं अनुष्ठानों के शुभ मुहूर्त निश्चित होते हैं। भारतीय कालगणना में सर्वाधिक महत्व विक्रम संवत पंचांग को दिया जाता है। सनातन धर्मावलम्वियों के समस्त कार्यक्रम जैसे विवाह, नामकरण, गृहप्रवेश इत्यादि शुभकार्य विक्रम संवत के अनुसार ही होते हैं।
प्रतिपदा हमारे लिये क्यों महत्वपूर्ण है, इसके सामाजिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ हैं-
मां दुर्गा की उपासना का नवरात्र व्रत प्रारम्भ, युगाब्द का आरम्भ, उज्जयिनी सम्राट विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ, शालिवाहन शक् संवत् प्रारम्भ, महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना। किसानो के लिए यह नव वर्ष के प्रारम्भ का शुभ दिन माना जाता है। इसी तिथि को रेवती नक्षत्र में विष्कुम्भ योग में दिन के समय भगवान के आदि अवतार मत्स्य रूप का प्रादुभाव भी माना जाता है: ‘कृते च प्रभवे चैत्रे प्रतिपच्छुक्लपक्षगा, रेवत्यां योगविष्कुम्भे दिवा द्वादशनाडिकाः। मत्स्यरूपकुमार्या च अवतीर्णों हरिः स्वयम्।’ युगों में प्रथम सत्ययुग का प्रारम्भ भी इसी तिथि को हुआ था: ‘चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि। शुक्ल पक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति’, मर्यादा पुरूषोत्ततम श्रीराम का राज्याभिषेक।
वर्तमान में यह क्यों इस हिन्दू बहुल देश में अप्रचलित हो गया?
यह विडम्वना ही है कि हमारे समाज में जितनी धूम-धाम से विदेशी नववर्ष एक जनवरी का उत्सव नगरों-महानगरों में मनाया जाता है, उसका शतांश हर्ष भी इस पावन पर्व पर दिखाई नहीं देता । 31 दिसंबर की आधी रात को नव वर्ष के नाम पर नाचने वाले आम जन को देखकर तो कुछ तर्क किया जा सकता है, पर भारत सरकार को क्या कहा जाए जिसका दूरदर्शन भी उसी रंग में रंगा श्लील-अश्लील कार्यक्रम प्रस्तुत करने की होड़ में लगा रहता है। हमें गर्व है कि हम इसाई कैलेंडर से 57 साल आगे हैं। भारतीय नववर्ष वेद पुराण, इतिहास और शास्त्रीय परंपराओं को जोड़कर नववर्ष मनाये जाने की रूपरेखा तैयार की गई है।
हमारे पूर्वजों ने इतने वैज्ञानिक एवं कालजयी ज्ञान -विज्ञान को लंबे अनुसंधान एवं प्राप्त परिणामों के आधार पर विकसित किया था। लेकिन आज की नई पीढ़ी को अपनी इस सदियों पुरानी श्रेष्ठ परम्परा का ज्ञान ही नहीं है। वह यह नहीं जानती कि हमारा हिन्दू संस्कृति के अनुसार नव वर्ष कब आ रहा है और कब जा रहा है। यदि हम नई पीढ़ी तक अपने नव वर्ष की वैज्ञानिकता एवं महत्ता को पहुंचा सकें, तो मानो यह जीवन सफल हो गया।
बहुत से लोग तो इस पर्व के महत्व से भी अनभिज्ञ हैं। आश्चर्य का विषय है कि हम परायी परंपराओं के अन्धानुकरण में तो रुचि लेते हैं किन्तु अपनी विरासत से अनजान हैं। हमें अपने पंचांग की तिथियां, नक्षत्र, पक्ष, संवत् आदि प्रायः विस्मृत हो रहे हैं। यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हैं. इसे बदलना होगा। आइये, अपने नववर्ष को पहचानें, उसका स्वागत करें और परस्पर बधाई देकर इस उत्सव को सार्थक बनायें।
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