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ओड राजपूत | क्षत्रिय वर्ण - Hindu Sanatan Vahini

ओड राजपूत

ओड राजपूत – भारत सांस्कृतिक द्रोहार और शूरवीरो की भूमि रहा है जिसके इतिहास काल में अनेको ऋषि मुनियो और शूरवीरो के खिस्से आज भी हमें प्रेरणा देते है 1950 से पहले के काल खंड में भारत में वर्ण व्यवस्था संचालित थी जिसका सीधा सम्भन्ध कुल व्यवस्था पर आधारित रहा है ब्रह्मण क्षत्रिये वैश्य और शूद्र चार वर्ण जो किसी भी व्यक्ति की कुल व्यवस्था को दर्शाते थे वही आजादी के बाद आर्थिक और गरीबी के आधार पर कई कैटगिरी का नव निर्माण किया गया जो की सामान्य, ओबीसी, और (SC) बीसी इत्यादि है हम आपको बतादे ये सब आर्थिक वयवस्था है

इसे कुल व्यवस्था का कोई लेना देना नहीं है कुल कर्म और वर्ण पर आधारित होता है इसी व्यवस्था को वर्तमान दौर के भारत में आमजन कुल व्यवस्था समज बैठे है इसी अर्थ व्यवस्था और गरीबी के भवर में फसी एक शूरवीर जाती के बारे में हम आपको बताने जा रहे है जो की वर्ण व्यवस्था और कुल के अनुसार शत्रिये है किन्तु भारत के कई भागो में उनको अजीब नजरो से भीं से देखा जाता है क्युकी वे सरकार द्वारा बनाई गई व्यवस्था के कारन भारत के कई भागो में (SC) कैटगिरी के अंतर्गत आते है यहां तक की युवा पीढ़ी के अंतर्मन में भी ये धारणाये आने लगी है की वो (SC) कैटगिरी में है बहुत लोग ये समज पाने में असमर्थ है की (SC) कैटगिरी सरकार द्वारा आर्थिक आधार पर निर्मित है

लकिन वे इसको कुल व्यवस्था समझने लगे है जी हा हम आज बात कर रहे है ओड जाति की जो की वर्ण अनुसार शत्रिये वर्ण में आती है और वे क्षत्रिये है लेकिन आर्थिक जातिगत और गरीबी के आधार पर भारत के कई भागो में (SC) में आते है जैसे की हरियाणा में जाट समुदाय सामान्य वर्ग में है और उत्तर प्रदेश में ओबीसी वर्ग में क्युकी यह अर्थ वयवस्था पर आधारित है वर्ण व्यवस्था को कुल व्यवस्था माना जाता है सामान्य, ओबीसी, और (SC) बीसी के आधार पर हम किसी की कुल वर्ण व्यवस्था का अनुमान नहीं लगा सकते हम आपको बताते है उत्तर व पश्चिम भारत में ओड समाज सबसे अधिक प्रचलित है उत्तर प्रदेश के, गजट में, ओड-शब्द है ही नहीं वहां सरकारी गजट में ‘बेलदार’ अनुसूचित वर्ग (SC) में है जो अधिकांशतः पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहते हैं,

जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ‘ओड राजपूत’ सामान्य वर्ग (GENRAL) में हैं। राजस्थान के गजट में ‘ओड’ अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में हैं जबकि कुछ जिलों में आम बोलचाल में इनको ‘बेलदार’ कहते है। गुजरात के गजट में ‘ओड’ अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में हैं जबकि आम बोलचाल में इनको ‘बेलदार’ व ओड दोनों ही कहते है। पंजाब, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश में सिर्फ ‘ओड’ अनुसूचित जाति (SC) में है इन प्रदेशों में कई बेलदार जाति भी होती है

यहाँ के लोग नही जानते हैं। मध्यप्रदेश में ओड जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में है जबकि बेलदार जाति अनुसूचित वर्ग (SC) में आती है। कर्नाटक में ओड जाति अनुसूचित वर्ग (SC) में आती है और बेलदार जाति का किसी भी सूची में कोई जिक्र नही है । बिहार में बेलदार जाति अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आती है वहाँ ओड जाति किसी वर्ग में नही हैं । महाराष्ट्र में ओड व बेलदार जाति घुमंतू वर्ग (NT) में आती है । दिल्ली में ओड जाति राज्य सूची ( केंद्रीय सूची में नही) अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में है ।

ओड शब्द हमारे (ओड व बेलदार दोनों समाजों ) समाज का जनक है, क्योंकि जो बेलदार हैं वे भी जब किसी अपरिचित से मिलते हैं तो अपनी जाति ओड बताते हैं।

ओड शब्द ओड्र शब्द का अपभ्रंश रूप है और ऐतिहासिक रूप से मनुस्मृति में ओड जाति को प्राचीन क्षत्रिय माना है। ओड शब्द सरकारी गजट में अधिसूचित है और देश के अधिकांश राज्यों में अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में भी दर्ज है।

इतिहास-ओड राजपूत

ओड जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा सगर के वंशज राजा ओड से है। ऐतिहासिक ग्रंथों एवं प्राचीन पौराणिक ग्रंथों के अनुसार राजा ओड ने दक्षिण दिशा में ओड देश की स्थापना करके राज्य किया गया था और तभी से राजा ओड की जाति संतान ओड राजपूत के नाम से विख्यात हुई। वर्तमान ओडिशा राज्य ही इतिहास में वर्णित ओड देश था। सूर्यवंशी राजा ओड सगरवंशी थे और इसी वंश में राजा सगर के वंशजों के उद्धार के लिए राजा भागीरथ द्वारा गंगा मां को धरती पर अवतरण करने व अपने पूर्वजों को श्राप से मुक्त कराने के कारण इस जाति के लोग भागीरथ वंशी ओड राजपूत के नाम से जाने गए। आप कपिल मुनि के शाप से भस्म हुए राजा सगर के वंशजों की कहानी से भली-भांति अवगत होंगे। यह वंश काफी प्राचीन है और पूरे भारतवर्ष में फैला हुआ है।

वंश की 3 शाखाएं हैं जो निम्नवत है। महाभारत युद्ध के पश्चात भागीरथ वंशी ओड राजपूत की शाखा गंगा वंश के नाम से प्रसिद्ध हुई । राजा भागीरथ द्वारा अपने पूर्वजों के उद्धार हेतु गंगा मां को पृथ्वी पर अवतरण करने के कारण ओड राजपूत की यह शाखा गंगा वंशी राजपूत के नाम से प्रसिद्ध हुई। इस वंश के अंतिम राजा भीम अनंग देव ने ओड राज्य में राजा ओड द्वारा निर्मित जगन्नाथ जी भगवान के मंदिर को बहुत बड़े भूभाग में पूर्ण भव्यता के साथ निर्मित कराया गया। इस मंदिर के बारे में आप को बता दें कि रामायण के उत्तराखंड में भगवान श्रीराम ने विभीषण को भगवान जगन्नाथ जी को इक्ष्वाकु वंश का कुल देवता बताया है। पुराणों में जगन्नाथ जी भगवान का मंदिर ओड राज्य में स्थित होना बताया गया है। ओड राज्य में गंगा वंशी राजाओं का राज्य 15वी शताब्दी तक मिलता है।

राजा भीम अनंग देव के पश्चात ओड राज्य ओडिशा पर मुगल शासकों का आधिपत्य होना इतिहास में लिखा हुआ मिलता है। ओड देश ओडिशा पर मुगल शासकों का अधिपत्य हो जाने के पश्चात ओड राजपूतों द्वारा ओड राज्य ओडिशा को छोड़कर राजस्थान के लिए प्रस्थान किया गया है ओड देश ओडिशा पर मुगल शासकों का राज्य स्थापित हो जाने के पश्चात ओड राजपूतों के द्वारा ओड देश ओडिसा राज्य को त्यागकर राजस्थान के लिए प्रस्थान किया गया और तब राजस्थान के कुंभलगढ़ परगने में ओडा गांव की स्थापना ओड राजपूतों के द्वारा की गई और तब ओड राजपूत गहलोत वंश की शाखा के रूप में प्रतिष्ठित हुए। तथा कुछ पाकिस्तान के जंग जिले में जाकर बस गए थे

मेवाड़ के अनेक राजाओं के साथ ओड राजपूतों का युद्ध में प्रतिभाग करना पाया गया है। मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप के समय में महाराणा के साथ लाखों की संख्या में ओड राजपूत उनके साथ युद्ध करते थे। इतिहास मैं मेवाड़ के राणा महाराणा प्रताप के साथ ओड राजपूत सैनिक पिंड बनाकर मुगलों से युद्ध किया करते थे। इनके इस प्रकार युद्ध करने के कारण ओड राजपूत की शाखा पिंडारा प्रसिद्ध हुई।

महाराणा प्रताप के बाद राणा राजसिंह जब मेवाड़ की गद्दी पर बैठे तब राणा प्रताप के बाद राणा राजसिंह ही एक ऐसे राजा हुए जिन्होंने मुगलों से डटकर युद्ध किया। ऐतिहासिक ग्रंथों में लिखा है कि राणा राजसिंह का निधन कुंभलगढ़ के गांव ओड़ा में हुआ। ओड राज्य का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। इतिहास में इस वंश की तीन शाखाओं का वर्णन मिलता है। 1 गंगा वंश 2 पिंडारा 3 ओड बेलदार । ओड राजपूत की इन तीनों शाखाओं का वर्णन इतिहास व ग्रंथों मैं मिलता है।

राजा ओड के राज्य का वर्णन महाभारत काल के समय मैं भी मिलता है । महाभारत के समय में भारत वर्ष के समस्त राजाओं की बुलाई गई बैठक मैं राजा ओड की उपस्थिति ओड राजवंश की उपस्थित एवं उन्नति को दर्शाती है। इतिहास एवं पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात राजपूतों के बहुत सारे वंशों की समाप्ति का भी उल्लेख मिलता है।

महाभारत का युद्ध इतना भयंकर था कि इसमें अनेकों राजवंशों को हानि उठानी पड़ी थी और कई सारे राज वंश इस युद्ध के पश्चात विलुप्त होने के कगार पर आ गए थे। वर्तमान में मुगलो के हत्याचारों के बाद तथा 1965 के उपरांत गरीबी के आधार पर कई राज्यों में उनको (SC) में शामिल किया गया लेकिन उनका कुल क्षत्रिये है

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