
सनातन धर्म: परिचय यह आलेख सनातन परंपरा, वैदिक संस्कृति, और जीवन दर्शन पर आधारित है।
सनातन परंपरा की परिभाषा
यह धर्म केवल एक पूजा पद्धति नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक सनातन शैली है, जो वेदों, उपनिषदों, महाभारत, रामायण और अन्य ग्रंथों पर आधारित है।
मुख्य आधार
- वेद – वैदिक संस्कृति का मूल आधार।
- उपनिषद – ज्ञान और मोक्ष के सिद्धांत।
- पुराण – धार्मिक कथाएँ और शिक्षाएँ।
- गीता – आध्यात्मिक और नैतिक ज्ञान का स्रोत।
- धर्मशास्त्र – सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था।
प्रमुख श्लोक एवं अर्थ
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ (भगवद गीता 2.47) अर्थ: हमें अपने कर्तव्य पर ध्यान देना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
मुख्य सिद्धांत
- कर्म का सिद्धांत – प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्मों का उत्तरदायी होता है।
- पुनर्जन्म और मोक्ष – जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना।
- चार पुरुषार्थ – धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष।
- वर्ण व्यवस्था – समाज को चार भागों में विभाजित किया गया है।
आधुनिक परिप्रेक्ष्य
आज भी वैदिक परंपरा के सिद्धांत वैश्विक स्तर पर स्वीकार किए जा रहे हैं। योग, ध्यान, आयुर्वेद और कर्म सिद्धांत को अपनाया जा रहा है।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. वैदिक परंपरा क्या है?
यह जीवन जीने की एक शैली है, जो वेदों और उपनिषदों पर आधारित है।
2. प्रमुख ग्रंथ कौन-कौन से हैं?
वेद, उपनिषद, भगवद गीता, महाभारत, रामायण और पुराण।
3. क्या यह केवल भारत तक सीमित है?
नहीं, इसका प्रभाव पूरी दुनिया में है।
4. ईश्वर की अवधारणा क्या है?
इसमें ईश्वर को निराकार और साकार दोनों रूपों में माना जाता है।
5. क्या मूर्तिपूजा आवश्यक है?
नहीं, यह व्यक्तिगत आस्था पर निर्भर करता है।
निष्कर्ष
यह परंपरा केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू को संतुलित और समृद्ध बनाने की एक सनातन प्रक्रिया है।