• Welcome to Giving Hearts, Social Organization!.
  • EventsView Upcoming Events
  • VolunteerSpread to the World
  • Helpline(+910)-728-027-000

सनातन धर्म की परिभासा - Hindu Sanatan Vahini

sanatan dharm

पुराणों के हिसाब से क्या है धर्म?

अगर हम गीता, रामायण और महाभारत को देखें, तो अलग-अलग जगहों पर धर्म की कोई ना कोई परिभाषा देखने को मिलती है। 

धृतराष्ट्र उवाच

धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः।

मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय

(पहला अध्याय, श्लोक 1)

अर्थ – ।।1.1।। धृतराष्ट्र बोले , हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से इकट्ठे हुए मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने भी क्या किया? 

महाभारत के इस श्लोक में पहले ही धृतराष्ट्र ने युद्धभूमि को धर्म भूमि बताया है। यानी धृतराष्ट्र मानते हैं कि महाभारत का युद्ध धर्म और अधर्म का युद्ध का जिसका फैसला कर्मभूमि में होना था। यही कारण है कि युद्धभूमि को धर्म भूमि कहा गया है। 

अगर आपने सुप्रीम कोर्ट में लिखे हुए संस्कृत श्लोक को देखा है, तो वहां लिखा है ‘यतो धर्म: ततो जय: (जहां धर्म है वहां जीत है)’। यह श्लोक महाभारत में कुछ 11 बार आता है और अपने धर्म का पालन करने को कहता है। 

हमने महाभारत के कई श्लोकों में देखा है कि श्री कृष्ण स्वयं ही कहते हैं कि कर्म ही धर्म है-

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

अर्थ – महाभारत के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में लिखा है कि कृष्ण अर्जुन को सिर्फ कर्म करने को कहते हैं क्योंकि फल देने वाले ईश्वर खुद हैं। ऐसे में अगर हम पुराणों के बारे में देखें, तो यही पाएंगे कि कर्म को ही वहां धर्म बताया गया है। 

क्या है सनातन धर्म का अर्थ? 

‘सनातन’ का अर्थ है – शाश्वत या ‘सदा बना रहने वाला’, अर्थात् जिसका न आदि है न अन्त। सनातन धर्म एक संस्कृत शब्द है जिसे अब हिंदी के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

धर्म की बात करें, तो यह शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है। इसका मतलब है धारण करना या पालन करना। अब इस शाब्दिक अर्थ को देखा जाए, तो सामने आएगा कि ‘धारण करने योग्य आचरण ही धर्म है।’ 

अगर सनातन और धर्म दोनों शब्दों को जोड़ा जाए, तो अर्थ निकलेगा, सदा बना रहने वाला आचरण ही धर्म है।

कहां से हुई सनातन शब्द की शुरुआत?

जब बात धर्म की हो, तो ग्रंथों के मुताबिक सबसे पहला उदाहरण गीता में ही मिलता है। सनातन शब्द का प्रयोग भी अर्जुन द्वारा किया गया था। 

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।

धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।।1.40।। 

अर्थ – गीता के पहले अध्याय के 40वें श्लोक में अर्जुन ने सनातन शब्द का प्रयोग किया है। अर्जुन ने कहा है कि जब कुल में दोष लगता है, तो कुल के धर्म का भी नाश हो जाता है। गीता में कई बार सनातन शब्द सामने आया है जहां उसका अर्थ सदा चलने वाला ही बताया है। कृष्णा ने भी गीता में ही कहा है कि आत्मा सनातन है। धर्म ही कर्म है।